डीग्री धारी शिक्षित बेरोजगारी के रूप में आज सामने है.
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गरीबी और शिक्षित बेरोजगारी की संख्या बढÞते देख विदेशी भी चिन्तित हैं।
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स्वरोजगार की नई योजना चलाए जाने के कारण शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का हल क्रमश: होता जा रहा है।
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शिक्षित बेरोजगारी, भूखमरी, महंगाई, पेयजल, बिजली, पर्यवार्नीय आदि एक नया संकट बने हुए हैं.
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यही कारण है-परिचारिकाओं व परिचारकों ही नहीं मजदूरों की कमी देखी जा सकती है, जबकि शिक्षित बेरोजगारी देश के सामने समस्या बन रही है.
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शिक्षित बेरोजगारी भत्ता और लैपटॉप या टैबलेट पाने की उम्मीद में स्नातक तो क्या इंटर पास लड़के-लडकियां भी अपना नाम रोजगार दफ्तरों में दर्ज करवा रहें हैं.
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किसी वृद्ध का यह हाल तो होता है रहता है कमबख्त शिक्षित बेरोजगारी ने लोगों को अपनी कुंठाओं से निजात पाने के लिये इस तरफ जो धकेल दिया है।
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लेकिन इसके बिना वह दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक कैसे बन सकता था? शिक्षित बेरोजगारी की नई अर्थव्यवस्था में वह रोजगार और किस तरीके से हासिल कर सकता था? सो उसे माफ कर देना चाहिए।